Wednesday, 29 October 2025

कविता - एक भाव

 संध्या सिंह

 

बेचैन अन्धेरा

टकटकी लगाकर 
खिड़की से पूरब की ओर झाँकता रहा 
अभिमानी नींद
ऊँकडू बठी रही आँखों में 
और कतारबद्ध सपने
बाहर उनींदे से खड़े रह गए 
करवटों ने 
यादों के श्यामपट्ट पर 
कुछ सिलवटें लिखीं 
ख्यालों में खोई नज़र ....
पढ़ भी नहीं पायी थी ठीक से 
कि सूरज ....
लाल आँखें तरेरता हुआ आया 
और मिटा दिया सब कुछ 
उजाले के डस्टर से
और इस तरह 
फिर एक रात
बिना पढ़ी रह गयी

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