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Sunday, 15 May 2016

कविता – अँधेरे में डूबे बिना

- संतोष चतुर्वेदी 

चकाचौंध भरे उजाले से
अँधेरे में आकर
तत्काल ही नहीं समझा जा सकता
अँधेरे को ठीक से
तब शर्तिया तौर पर चौंधिया जाएँगी आँखें  
और नहीं दिखायी पड़ेगा
बिल्कुल नजदीक तक का
अँधेरे में कुछ भी

अँधेरे को देखने के लिए
पहले अँधेरे के अनुकूल बनानी पड़ती हैं आँखें
अँधेरे को समझने के लिए
होना पड़ता है पहले पूरी तरह अँधेरे का
अँधेरे को जानने के लिए
अँधेरे के साथ ही पड़ता है जीना

अँधेरे को नहीं देखा जा सकता

अँधेरे में डूबे बिना

संतोष चतुर्वेदी


जन्म 02 नवम्बर 1971 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के हुसेनाबाद गाँव में एक सामान्य किसान परिवार में.

शिक्षा- समस्त प्राथमिक शिक्षा गाँव से ही. उच्च शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से. प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व और आधुनिक इतिहास विषय से एम. ए.; एल-एल बी. एवं पत्रकारिता में परास्नातक डिप्लोमा. प्राचीन इतिहास से डी. फिल.

गतिविधियाँ- 1997 से 2010 तक कथापत्रिका के सहायक सम्पादक. जनवरी 2011 से साहित्यिक सांस्कृतिक पत्रिका अनहदका सम्पादन. इलाहाबाद के दूरदर्शन और आकाशवाणी केन्द्रों से समय-समय पर कविताओं का प्रसारण.
एक महत्वपूर्ण ब्लॉग (इंटरनेट पत्रिका) पहली बारके मोडरेटर. 

प्रकाशन- देश भर की महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में कविताओं का प्रकाशन.
कविता संग्रह - पहली बार’, ‘दक्खिन का भी अपना पूरब होता है
इतिहास की दो किताबें भारतीय संस्कृतिऔर भोजपुरी लोक-गीतों में स्वाधीनता आन्दोलन’ 

पुरस्कार- वर्तमान साहित्य का मलखान सिंह सिसौदिया कविता सम्मान 2013
सम्प्रति उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले के मऊ स्थित एम. पी. पी. जी. कालेज में इतिहास के विभागाध्यक्ष.
सम्पर्क-
3/1 बी, बी. के. बनर्जी मार्ग, नया कटरा, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश-211002
मोबाईल- 09450614857

E-mail- santoshpoet@gmail.com