Showing posts with label समीक्षा. Show all posts
Showing posts with label समीक्षा. Show all posts

Sunday, 17 January 2016

कोहरे से सूरज और धूप की तरफ अग्रसर कवि


डॉ अजीत प्रियदर्शी


भूमण्डलीकरण और बाजारवाद के बढ़ते दुष्प्रभावों से भरा यह समय मनुष्यमात्र के लिए गहरे, तनाव, दबाव, निराशा और खीझ से भरा है। कविता के लिए भी समय तनाव, दबाव, प्रतिरोध और असंतोष की अभिव्यक्ति के रूप में दिखाई दे रहा है। पक्षधर और प्रतिबद्ध कवि अपने समय तथा समाज के मनुष्यों की स्थिति, नियति से मुठभेड़ करते हैं फिर उन्हें बदलने के स्वप्न देखते हैं, आकांक्षा करते हैं और बदलाव के स्वप्न, आकांक्षा तथा संकल्प के साथ कविता करते हैं। कविता हमेशा जीवन के सच्चे अनुभवों से पैदा होती है। सच्चे अनुभवों के अभाव में कविता शब्दों का मधुर संसार मात्र रह जाएगी, जिसमें मार्मिकता और हृदयस्पर्शिता नहीं होगी। जीवन की खरी व सच्ची अनुभूतियों से लैश कविता में ही विश्वसनीयता और आत्मीयता का सहज संसार विद्यमान होगा।
बृजेश नीरज समकालीन कविता के पाठकों के बीच सुपरिचित नाम नहीं है। कोहरा सूरज धूपउनका पहला काव्य संग्रह है, जो अंजुमन प्रकाशन इलाहाबाद से छपा है। इस संग्रह में कुल साठ कविताएँ संकलित हैं। संग्रह की अधिकांश कविताएँ आकार-प्रकार में छोटी हैं लेकिन वे अनुभूति व अनुचिंतन से भरी कविताएँ हैं। इस संग्रह की अधिकांश कविताएँ यथार्थ को पूरी गम्भीरता से परखती हैं और सच को सच की तरह कहने का प्रयास करती हैं। उनकी कविताएँ मात्र अनुभूतियों, भावों की अभव्यक्ति नहीं हैं, बल्कि उनके विचारों और पक्षधरता का प्रकटीकरण भी है। कवि पाता है कि मनुष्य के लोभ का विकराल रूप अब प्रकृति का, नदी का ऐसा कृतघ्न दोहन करने लगा है कि नदी की धारा ठिठकी सीहै। धारा ठिठकी सी कविता में कवि रेखांकित करता है मैल से भरी, सहमी, सिकुडी धारा पर जब प्रातःकालीन सूर्य की किरणें पडती हैं तब- उजास नहीं फैलातीं/ खो जाती हैं/ स्याह लहरों में

बृजेश नीरज की छोटी कविताएँ अधिक भावप्रवण और विचार सघन हैं। ऐसी कविताओं में मुख्यतः अनुचिंतन या अनुभूति की प्रधानता होती है। छोटी कविताओं को पढ़कर कवि की भावना के साथ-साथ उनके विचार, पक्षधरता का स्पष्ट पता चलता है। विरोधकविता की ये पंक्तियाँ चित्रमयता, बिम्वमयता और अनुभूतिपरकता के साथ मार्मिक असर छोड़ती हैं- वातावरण में घुले नारे/ खण्डर में पैदा हुई अनुगूँज की तरह/ कम्पन पैदा करते हैं/ सर्द हवाएँ/ काँटों की तरह चुभती हैं/ अँधेरा गहराता जा रहा है मनुष्य विरोधी सत्ता के विरोधमें उठे नारे व्यक्ति के मनःमस्तिष्क में कम्पन पैदा करते हैं, ठीक उसी तरह जिस तरह सर्द हवाएँ काँटों की तरह चुभती हैं। कवि ने संकेत किया है कि अँधेरा गहराता जा रहा हैऔर ऐसे संकटपूर्ण समय में विरोधकी सार्थकता स्वंय सिद्ध है।

वर्तमान समय की सामाजिक-आर्थिक विषमता और उनसे पैदा हुई विसंगति, विद्रूपता और त्रासदी का चित्रण इस संग्रह की कविताओं में है। वर्तमान के कटु यथार्थ को, जीवन यथार्थ की विडम्बना को कवि ने कई बार मार्मिक व्यंग्य के सहारे उकेरा है। आजाद हैंकविता की कुछ पंक्तियाँ इसकी गवाह हैं- पेड़ की फुनगी पर टॅगे/ खजूर/ उसकी परछाई में/ खेलते बच्चे/ सूखे खेत/ कराहती नदी/ बढ़ता बंजर/ लोकतंत्र के गुम्बद के सामने/ खम्बे पर मुँह लटकाए बल्ब


कई बार तकलीफदेह जीवन दृश्यों को देखकर उनका संवेदनशील मन भावुक हो जाता है। असरदार चित्रों- बिम्बों के सहारे कवि ने वर्तमान समय के संकटों और संवेदनहीन सत्ता से उपजी त्रासदी को मार्मिक ढंग से बयान कर दिया है। जीवन संघर्ष की आँच में तपते-जूझते और भूख से छटपटाते, दलित बचपनको देखकर कवि की भावना उमड़ पड़ती है: पैसे के लिए हाथ फैलाते ही/ बिखर गया बाल पिण्ड/ सूखे होठों पर/ किसी उम्मीद की फुसफुसाहट/ आँखों में/ भूख की छटपटाहट/ व्यवस्था के पहियों तले/ दमित बचपन/ बेचैन था वयस्क हो जाने को। यहाँ कवि की कोरी भावुकता ही दर्ज नहीं हुई बल्कि दुखपूर्ण बाह्य जीवन पर उनकी संवेदननात्मक व मानसिक प्रतिक्रिया भी दर्ज हुई है। मई-जून की प्रचण्ड गर्मीं में जबकि लोग घरों में दुबके हैं, कवि देखता है कि- एक आदमी/ सिर पर ईंटें ढोता/ कहीं पिघला न दे उसे भी/ यह गर्मी/ लेकिन शायद/ उसकी आँतों का तापमान/ बाहर के तापमान से अधिक है यहाँ भावना, संवेदना और विचार की घुलावट है तथा निजी अनुभूति का ताप भी है। तभी तो वे अंतर्जगत में मौजूद तीन शब्दसे खुद को दहकता हुआ पाते हैं: आदमी, पेट, भूख/ जाने कब तक लदे रहेंगे/ मेरे कंधों पर

बृजेश नीरज असहज यथार्थ से बचते नहीं है बल्कि उससे मुठभेड़ करते हैं। उनकी कविता यथार्थ से मुठभेड़ की कविता है। वह देखते हैं कि अक्षर, शब्द और भाषा का मनमाना प्रयोग हो रहा है और उन्हें स्वार्थी मठाधीश अपने निजी स्वार्थ पूर्ति का साधन बना रहें हैं- अक्षर रंग बदल रहे हैं/ कथाएँ अर्थ/ नई परिभाषाएँ गढ़ी जा रही हैं/ नए मठ आकार ले रहें है। लेकिन कवि ने यहाँ इशारा तो किया है पर खुलासा नहीं किया है कि ऐसे लोग कौन हैं? उनकी शक्लें नहीं उभर पाई हैं यहाँ। उनकी कविता में यथार्थ की चीड़फाड़ कम है। कई बार यथार्थ का सरलीकरण की प्रवृत्ति कवि में दिखाई देती है। वह यथार्थ की भीतरी तहों को नहीं खोलता: कुछ है जो/ कहने से रह जाता है हर बार

शब्द और भाषा की ताकत और कमजोरी का गम्भीर एहसास कवि को है। वह पाता है कि- चीथडों से झाँकते/ शब्द बेचैन हैंकविता के वर्तमान संकट का अनुभव भी कवि निरंतर करता है। वह पाता है कि कविता कराह रही है/ गली के नुक्कड़ पर पड़ी/ तेज रफ्तार जिंदगी/ रौंदकर चली गई उसे। लेकिन जिंदगी में उम्मीद का दामन मजबूती से थामने वाला कवि, कविता के प्रति भी नाउम्मीद नहीं है। लेकिन अँधेरे को उजालाकहना सच्चाई से मुकर जाना है। यह बात वह जानता है इसीलिए वह सच्चाई बयान करना चाहता है, जिससे जीवन और कविता में दूरी न पैदा हो जाए। उसकी स्वीकोक्ति है: अब, मैं चाहता हूँ/ लिखूँ लालटेन/ लेकिन लिखने के लिए/ खुद लालटेन होना होगा/ पर मैं तो अँधेरे में हूँ/ पिघलता अँधेरा इस संग्रह में एक कविता है- उम्मीद। इस कविता की पंक्तियाँ हैं- हालांकि अँधेरे में हूँ/ लेकिन कुछ रोशनी आ रही है मुझ तक/ सुबह होने को है। ऐसी ही एक कविता है आस। जिंदगी के रास्ते में गहराते कोहरे के बीच चलना है। कवि यह तय कर चुका है क्योंकि जीवन संघर्ष में वह देख चुका है कि पत्तों के ढेर के नीचे/ चीटियाँ रास्ता ढूँढ रही हैं

बृजेश नीरज की कविता जीवन के जीवंत संघर्षों और कार्य-व्यापारों से संयुक्त है। उनकी कविता आसपास के जीवन और घर परिवारों से जुड़ी हुई है। उनकी कविता में आत्मपरकता के अंतर्गत वैयक्तिक अनुभूतियों का जीवन संसार मौजूद है। उसके दुख- शोक में विश्व-व्यथा का बीज मौजूद है। विश्व-व्यथा में कवि के निजी दुख-शोक की अनुभूतियों की छाप है। उनके यहाँ आत्मीयतापूर्ण पारिवारिक जीवन के स्नेह-माधुप और जीवन-संघर्ष के विविध रंग मौजूद हैं। वे कई कविताओं में पारिवारिक कर्तव्याभिमुख भावनाओं और दाम्पत्य प्रेम की भावनाओं की अभिव्यक्ति करते हैं। तुम्हारी आँखों में’, तुम्हारा स्पर्श, ‘विछोह(1,2) जैसी कविताओं में दाम्पत्य प्रेम और लगाव की अभिव्यक्ति हुई है। तुम्हारी आँखों में’, कविता की ये पंक्तियाँ सघन दाम्पत्य प्रेम की साक्षी हैं: तुम हमेशा ही/ एक उम्मीद थी/ मैं ही आँख मूँदे रहा/ अपने सपनों से/ जो हमेशा तैरते रहे/ तुम्हारी आँखों में

बृजेश नीरज भी कविता में गाँव और गाँव के लोगों, अम्मा, बचपन के मित्र तथा सुख-दुख की अर्धागिनी की आत्मीय और जीवंत उपस्थिति है। अपना गाँवकविता में वे स्मृतियों में जीवंत गाँव को याद करते हैं। वे याद करते हैं गाँव के बाग, नदी, हथपुइया रोटी पर नून-तेल से चुपड़कर खिलाने वाली बड़ी अम्मा और गुल्ली डण्डे के खेल को। मित्र के नामकविता में मित्र के लिए हमेशा तत्पर हृदय की मार्मिक अभिव्यक्ति है। बचपन के मित्र से बहुत दिनों बाद मिलने और उसके साथ होने वाले आत्मीय संवाद व आत्मीयता की संवेदनशील अभिव्यक्ति बहुत दिन बाद आएकविता में हुई है। आत्मीय बातचीत की शैली में गाँव-घर-खेत और गाँव के लोगों  के बारे में बताने वाली इस कविता की सहजतापुरअसर है। यह कविता पर्याप्त दिलचस्प और पठनीय है।

बृजेश नीरज की कविताओं में उनकी धार्मिक आस्था, भाग्यवाद और धार्मिक मिथकों-चरित्रों की अभिव्यक्ति हुई है। माँ शब्द दो कविता में वे कहते हैं जन्मा अजन्मा के भेद से परे एक सत्य माँ!“ ‘प्रातःकविता में प्रातःकाल के वर्णन में अक्षत, ‘कुमकुमजैसे शब्दों का इस्तेमाल एक धार्मिक वातावरण खड़ा करता है। धारा ठिठकी सीकविता में वे मैली गंगा से कहलाते हैं- हे भागीरथ’ ! तुम मुझे कहाँ ले आए?’ ‘उस पारकविता में वे अदृश्य रहस्थ के प्रति जिज्ञासा की अभिव्यक्ति करते हैं और मिथकीय पात्र गरूणभी अवतारणा करते हैं। मैं क्या हूँकविता में जगत और आत्म के प्रति अदृश्य, अज्ञात के प्रति जिज्ञासा भाव में उनकी आध्यात्मिक भावना का दर्शन होला है। वर्तमाल जीवन के संकट को मिथक व मिथकीय पात्रों और मिथकीय प्रतीकों द्वारा अभिव्यक्त करने की काव्य प्रवृत्ति राम तुम कहाँ होकविता में बखूबी देखी जा सकती है। जिंदगी कविता में भाग्यवाद की अभिव्यक्ति यों हुई है: जिंदगी हर बार/ दूर छिटक जाती है/ हर बार ढूँढता हूँ/ उसे फिर से/ हाथ की लकीरों में

बृजेश नीरज की कविता का गठन अनुभूति, संवेदना और विचारों के उचित सामंजस्य से मानसिक प्रक्रिया में होता हैं। उनकी कविता में उनकी सफगोई और संवेदनशील मन की अभिव्यक्ति हुई है। उनकी कविता में बिम्बों, मिथकों व प्रतीकों का इस्तेमाल हुआ है, कहीं सटीक और सृजनात्मक तो कहीं लापरवाहीपूर्वक। कविताओं में व्यतिरेक या तार्किक अन्विति का अभाव, अनुभूति की सरलता/ सपाटता/ और एकरेखीय, अनुभूतियों का सरलीकरण, धनीभूत भावना का बिखराव, निपट गद्यात्मकता, अतिभावुकता (सेंटिमेंटलिज्म), विवरणात्मकता आदि के कारण कविता और अभिव्यक्ति प्रभावहीन भी हुई है। इन कमियों के बावजूद उनकी कविता में बोलचाल की भाषा, दिलचस्प बयान, अनुभूति की सच्चाई, भाषिक ऐन्द्रिकता, आत्मीयता, सहजता और भाववेग वर्तमान समय के संकटों को लेकर चिंता और प्रतिबद्धता, विचारों की साफगोई आदि के कारण कई कविताएँ और कवितांश बड़े मार्मिक और प्रभावपूर्ण बन गए हैं। उनकी काव्य भाषा मध्यवर्ग के जीवन-व्यवहार की भाषा है। उनकी कविता एक तरह से संवाद कायम करती है, कभी स्वंय से कभी अन्यों से। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि वे एक संभावनाशील कवि हैं, काव्यक्षमता से परिपूर्ण हैं। आशा है कि आने वाले समय में वे एक महत्वपूर्ण कवि के रूप में निखरकर सामने आएँगे।

-         असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, हिन्दी विभाग, 
  डी.ए.वी. पी.जी. कॉलेज, लखनऊ

ई-मेल- priyadarshiajit7@gmail.com

Saturday, 16 January 2016

समीक्षा - लव कुमार लव के कविता संग्रह पर राहुल देव


अपनी मिट्टी से जुड़ी कविताएँ

कविता संग्रह- मिट्टी का साहित्य
कवि- लव कुमार लव
प्रकाशक- सतलुज प्रकाशन, हरियाणा
प्रकाशन वर्ष- 2015
पृष्ठ- 144
मूल्य- 250/-



कविता दुनिया की सबसे पवित्र और आदिम कला है| जब किसी भाषा का पहली बार आविष्कार हुआ होगा, तो जरूर कविता में ही यह जन्मी होगी| मनुष्य के लिए यह उतनी ही जरूरी रही होगी जितना हवा, पानी, भोजन और आवास| वर्तमान समय में बहुत से कवि अपने-अपने परिवेश में अपनी अभिव्यक्ति कविता में कर रहे हैं| लव कुमार लव भी उनमें से एक हैं| लव हरियाणा में हिंदी के अध्यापक हैं और साहित्य से गहरे तक जुड़े हुए हैं| मिट्टी का साहित्य उनका पहला कविता संग्रह है| इस संग्रह में उनकी कुल 68 कविताएँ संग्रहीत हैं|

प्रस्तुत संग्रह की कविताएँ पढ़ने से साफ़ होता है कि लव सामाजिक सरोकार से जुड़े रहने वाले एक संवेदनशील कवि बनने की प्रक्रिया में हैं| उनकी कविताओं के विषय समाज की विसंगतियों और यथार्थ के अंतर्विरोधों की उपज हैं| इस ओर से कवि की चिंताएँ इनकी कविता में व्यक्त हुई हैं| कवि अपनी काव्य-यात्रा के प्रारंभिक दौर में है| लव के पास अच्छी भाषा है, शैली है, शिल्प है बस उसे समकालीन साहित्य से जोड़कर देखने और रचना के स्तर पर और मांजने की आवश्यकता प्रतीत होती है| जब तक कवि कविता लिखने की पर्याप्त मानसिक तैयारी नहीं करता तब तक सच्ची कविता नहीं पैदा होती|

परछाई पहरेदार की नामक कविता में कवि की निम्न पंक्तियाँ देखें, “चल रहा हूँ उस युग की ओर/ बड़ी परछाई का बोझ लिए/ एक नयी सुबह की ओर/ लाठी बजाता, आवाज़ लगाता/ जागते रहो! जागते रहो!” या अपनी दलित शीर्षक कविता में कवि कहता है, “मैं ही आदि हूँ/ मैं ही अंत हूँ/ फिर भी समाज में/ अल्प पोषित क्यों हूँ/ इतना करने पर भी/ मैं ही शोषित क्यों हूँ ?”वह इन कविताओं में निरंतर प्रश्न उठाते हैं| कवि सार्वभौम मानवता का पक्षधर है| संग्रह की एक और महत्त्वपूर्ण कविता अपने कहन की वजह से अपना ध्यान आकर्षित करती है| शीर्षक है मजदूर चौक इस कविता में कवि एक मजदूर का चेहरा पढ़ने की कोशिश करता दिखता है| लव  लिखते हैं, “चेहरे पढ़ता हूँ कुछ क्षण रूककर/ कोशिश करता हूँ/ इनके अन्दर झाँकने की”|

लव को कविता की लय पर भी ध्यान देने की जरूरत है| कई कविताएँ इस कारण अपने पाठ में रूकावट जैसा आभास देती लगीं| वह कविता में स्मृति में जाते हैं फिर वर्तमान में वापस आते हैं लेकिन दोनों के मध्य कोई तार्किक रिश्ता प्रस्तुत नहीं कर पाते जिस कारण कविता एक नास्टैल्जिक विवरण बनकर रह जाती है| विषय को ज्यों का त्यों प्रस्तुत कर देने की अपेक्षा लव को उनमें बिम्ब लाकर अपनी कल्पना से जोड़ना चाहिए, यथार्थ की ज़मीन को छोड़े बगैर| इस ओर कवि को ध्यान देने की जरूरत है तभी उनकी कविता अपनी कोई स्वतंत्र पहचान बना पाने में सक्षम हो सकेगी| ऐसा नहीं है कि लव की कविता में बिम्ब नहीं हैं लेकिन वे उन बिम्बों को कोई उभार नहीं दे सके| कविता पढ़ने के बाद पाठक के मन में जो स्पेस बनना चाहिए वह नहीं बन पाता| साथ ही साथ कविता में असंगत तथ्य न आने पाएँ इस ओर भी कवि को ध्यान देना होगा| कवि का भाव-पक्ष विचार-पक्ष की अपेक्षा ज्यादा प्रबल है| कविता में शब्द-स्फीति पर भी कवि को नियंत्रण रखना होगा| कई अंश ऐसे हैं जोकि न भी होते तो कविता पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ता| कवि को अपनी कविता का विषय चुनते समय कथ्य की स्पष्टता का विशेष ध्यान रखना होगा| इसके अभाव में कविता का स्ट्रक्चर तो खड़ा हो जाता है लेकिन कोई केन्द्रीय भाव नहीं आ पाता जोकि शाब्दिक रूप से बिखरा-बिखरा कविता सा कुछ लगता तो है लेकिन मात्र इतने से वह कविता नहीं हो जाया करती|

कवि ने प्रकृति और मनुष्य के अंतर्संबंधों पर भी कुछ अच्छी कविताएँ लिखने की कोशिश की है| संग्रह में बेटी की चिंता, अन्दर की रामायण, मिट्टी का साहित्य, किसान कवि, शांति स्मारक, असली मूर्तियाँ, क्रूस पर कविता आदि कई अच्छी कविताएँ भी हैं| कवि ने कुछ अच्छे विषय उठाए हैं लेकिन कविता में उनका निर्वाह नहीं हो पाया है जैसे आधे मजदूर, दंगों का मुआवजा और रोटी शीर्षक कविता| कवि को ध्यान रखना चाहिए कि कविता लिखने के बाद उसमें संशोधन की गुंजाईश हमेशा बनी रहती है|

उम्मीद है लव मेरे द्वारा कही गयी उपरोक्त बातों को अन्यथा न लेंगे और अपने अध्ययन को बढ़ाते हुए आगे और अच्छी व प्रभावी कविताएँ रचेंगें| हिंदी कविता में वे अपने योगदान से पहचाने जाएँ मेरी यही कामना है| मेरी उनके प्रति हार्दिक शुभकामनाएँ!
--

समीक्षक-
राहुल देव
मो. 09454112975