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Sunday, 15 May 2016

लोकोदय पत्रिका


साहित्य की दिशा और दशा तय करने में पत्रिकाओं की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है. लोक विमर्श आन्दोलान की वैचारिक अवधारणा की पूर्ति के लिए तथा लोक से जुड़े साहित्यकारों की रचनाओं को सीधे पाठकों तक पहुँचाने के लिए पत्रिका की आवश्यकता साथियों द्वारा लगातार महसूस की जा रही थी. लोक विमर्शके नाम से आलोचना केन्द्रित पत्रिका पहले से प्रकाशित हो रही है लेकिन अब साथियों द्वारा विमर्श तथा विधा केन्द्रित पत्रिका की जरूरत महसूस की जा रही थी इसलिए लोकोदय प्रकाशन द्वारा साथियों की सहमति से लोकोदयनाम से एक त्रैमासिक पत्रिका प्रारम्भ करने का निर्णय लिया गया है.
लोकोदय पत्रिका की संपादकीय टीम इस प्रकार है-
प्रधान संपादक- नीरज सिंह
संपादक - भावना मिश्रा
उप संपादक-राम शंकर वर्मा
प्रेम नंदन
सह संपादक- प्रद्युम्न कुमार सिंह
फोटो सम्पादन व डिजाइनिंग- पूनम ठाकुर
आवरण- कुँवर रवीन्द्र
व्यवस्था व वितरण- सुरुचि
प्रकाशक- लोकोदय प्रकाशन
'लोकोदय' पत्रिका का प्रवेशांक जुलाई 2016 में प्रकाशित होगा। यह पत्रिका पुस्तकाकार में प्रकाशित होगी और इसमें ९६ पेज होंगे.
पत्रिका के लिए रचनाएँ इस ई-मेल पर प्रेषित की जा सकती हैं-

lokodaymagazine@gmail.com

लोकोदय साहित्य श्रंखला


लोकधर्मी साहित्यिक परम्परा से समकाल को जोड़ना आज के समय की जरूरत है इसलिए लोकोदय प्रकाशन द्वारा 'लोकोदय साहित्य श्रृंखला' प्रारम्भ करने का निर्णय लिया गया है। इसके अन्तर्गत लोकधर्मी कविता, लोकगीत, लोककथा, लोककला इत्यादि पर आधारित संकलन प्रकाशित किए जाएँगे। इस श्रृंखला का प्रारम्भ लोकधर्मी कविताओं के साझा संकलन के रूप में किया जाएगा।
लोकधर्मी कविताओं के साझा संकलनों की इस श्रृंखला का नाम 'कविता आज' होगा। इसके हर खण्ड में दो भूमिकाओं के साथ 21 महत्वपूर्ण लोकधर्मी कवियों की पाँच-पाँच कविताएँ, उनके परिचय तथा आलोचकीय टीप के साथ सम्मिलित होंगी।
'कविता आज-1' में सम्मिलित किए जाने वाले कवियों के नामों पर विचार कर लिया गया है। इस संग्रह के लिए नये और पुरानों कवियों के योग का ध्यान रखा गया है । 'कविता आज-1' में सम्मिलित होने वाले कवि हैं-विजेन्द्र, सुधीर सक्सेना, अनिल जनविजय, नासिर अहमद सिकन्दर, कुअँर रवीन्द्र, नवनीत पांडेय, मणिमोहन मेहता, बुद्धिलाल पाल, शहंशाह आलम, सन्तोष चतुर्वेदी, भरत प्रसाद, महेश पुनेठा, बृजेश नीरज, प्रेमनन्दन,अरुण श्री, रश्मि भरद्वाज, भावना मिश्रा, पीके सिंह, नरेन्द्र कुमार, नारायण दास गुप्त और शम्भु यादव।

'कविता आज' का सम्पादन उमाशंकर परमार और अजीत प्रियदर्शी करेंगे।

लोकोदय आलोचना श्रंखला


पूँजी और सत्ता का खेल अब हिन्दी साहित्य में जोरों पर है। साहित्य जगत पर बाज़ार का प्रभाव अब स्पष्ट नज़र आता है। मठों और पीठों के संचालक, बड़े अफसर, पूँजी के बल पर साहित्य को किटी पार्टी में बदलने के इच्छुकपैकेजिंग और मार्केटिंग में माहिर दोयम दर्ज़े के रचनाकार पूरे साहित्यिक परिदृश्य पर काबिज होने के प्रयास में लगातार लगे रहते हैं। ऐसे रचनाकारों द्वारा खुद की खातिर स्पेस क्रिएट करने के लिए चुपचाप साहित्य कर्म में संलग्न लोकधर्मी साहित्यकारों को लगातार नज़रअंदाज़ करने, उनको हाशिए पर धकेलने की कोशिश की जाती रही है
  
हिन्दी में बहुत से कवि हैं जिनके लेखन पर मुकम्मल चर्चा नहीं की गयी हैऐसे बहुत से कवि हैं जिन्होंने वैचारिक पक्षधरता को बनाए रखते हुए लोक की अवस्थितियों व संघर्षों का यथार्थ खाका खींचा तथा सत्ता और व्यवस्था के विरुद्ध प्रतिरोध की भंगिमा अख्तियार की लेकिन उनके रचनाकर्म पर समुचित चर्चा नहीं हो सकी लोकोदय प्रकाशन ने ऐसे कवियों पर आलोचनात्मक  श्रंखला प्रकाशित करने का निर्णय लिया है। इस श्रंखला का नाम होगा लोकोदय आलोचना श्रंखला इस श्रंखला के प्रथम कवि के रूप में  वरिष्ठ कवि तथा पत्रकार सुधीर सक्सेना के व्यक्तित्व, कृतित्व व काव्य रचना प्रक्रिया पर एक संपादित पुस्तक का प्रकाशन किया जाएगा किताब का संपादन किया जाएगा। इस पुस्तक का सम्पादन प्रद्युम्न कुमार सिंह और उमाशंकर सिंह परमार करेंगे

इस पुस्तक के लिए आलेख आमन्त्रित हैं। इच्छुक लेखक वर्ड फाइल के रूप में कृतिदेव या यूनिकोड फॉण्ट में अपने आलेख परिचय तथा नवीनतम फोटो के साथ इस ई-मेल पर ३० मई २०१६ तक भेज सकते हैं

आलेख भेजते समय यह उल्लेख अवश्य करें कि आलेख सुधीर सक्सेना पर केन्द्रित पुस्तक के लिए भेजा जा रहा है    

लोकोदय—एक समानांतर हस्तक्षेप


१- हमारा आन्दोलन

लोकविमर्श जनपक्षधर लेखकों / कवियों का सामूहिक आन्दोलन है। इस आन्दोलन का आरम्भ 2014 जनवरी से हुआ। इस आन्दोलन का पहला बड़ा आयोजन जून 2015 पिथौरागढ़ में सम्पन्न हुआ। इस आन्दोलन का मुख्य लक्ष्य राजधानी व सत्ता केन्द्रित बुर्जुवा साहित्य के प्रतिपक्ष में हिन्दी की मूल परम्परा लोकधर्मी साहित्य तथा गाँव और नगरों में लिखे जा रहे मठों और पीठों द्वारा उपेक्षित पक्षधर लेखन को बढावा देना है। नव उदारवाद व भूंमंडलीकरण के  फलस्वरूप जिस तरह से जनवादी लेखन को हाशिए पर लाने के लिए राजधानी केन्द्रित पत्रिकाएँ व प्रकाशन पूंजीपतियों की अकूत सम्पति द्वारा पोषित पुरस्कारों के सहारे साजिशें की जा रही हैं इससे साहित्य की समझ और व्यापकता पर प्रभाव पड़ा है। अस्तु विश्वपूंजी द्वारा प्रतिरोधी साहित्य को नष्ट करने के कुत्सित प्रयासों व लेखन में गाँव की जमीनी उपेक्षाओं के खिलाफ यह आन्दोलन दिन-प्रतिदिन आगे बढ़ता जा रहा है। आज इस आन्दोलन में लगभग 100 साहित्यकार जुड चुके हैं। हम मठों, पीठों, पूँजीवादी फासीवादी साम्प्रदायिक ताकतों के किसी भी पुरस्कार, लालच, साजिश का विरोध करते हैं। हम साहित्य में उत्तर आधुनिकता के रूपवादी आक्रमण के खिलाफ 'लोकभाषा' व लोकचेतना  की नव्यमार्क्सवादी अवधारणा पर जोर देते हैं क्योंकि हमारा मानना है कि आवारा पूँजी के इस साहित्यिक संस्करण का माकूल जवाब लोक भाषा और लोक चेतना से ही दिया जा सकता है। लोकविमर्श कोई संगठन नहीं है। यह आन्दोलन वाम संगठनों को मजबूत करने के लिए है। हम छद्मवामपंथियों के खिलाफ हैं जो पद और पुरस्कार पाने के लिए अपनी ताकत व पैसा के प्रयोग करते हुए वैचारिकता को भी नीलाम कर देते हैं क्योंकि हमारा अभिमत है कि ऐसे लोगों द्वारा आम जनता में वाम के प्रति गलत छवि निर्मित होती है। लोकविमर्श आन्दोलन में सम्मिलित होने की केवल एक ही अर्हता है कि व्यक्ति लेखक हो और पक्षधर हो; मठों और पीठों, छद्म लेखकों से दूर आम जन के लिए लिखता हो व जमीन में रहने, खाने, सोने व लड़ने की आदत भी हो। हमारे आयोजन गाँव व छोटी जगहों पर होते हैं। हम होटल व बड़े भवनों का प्रयोग नहीं कर सकते हैं। जो भी सुविधा स्थानीय कमेटी देती है उसी का प्रयोग करना अनिवार्य होता है तथा न कोई मुख्य अतिथि होता है न कोई नेता या महान व्यक्तित्व होता है, सब आपस में कामरेड होते हैं और आपसी चन्दे से हर आयोजन होते हैं। जो भी साथी इस आन्दोलन में भागीदारी करना चाहें उपरोक्त शर्तों के साथ उनका स्वागत है, अभिनन्दन है।

२- लोकोदय

लोकोदय प्रकाशन लोकविमर्श आन्दोलन का अनुषांगिक व्यावसायिक प्रतिष्ठान है। लोकोदय प्रकाशन की स्थापना साहित्य में प्रभावी बाजारवाद के खिलाफ पाठकों की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखकर की गयी है। हम पूँजीवादी बाजारीकरण के विरुद्ध जनपक्षधर लोकधर्मी साहित्य के प्रकाशन, प्रचार व प्रसार के लिए प्रतिबद्ध हैं। यह जनपक्षधर लेखकों व कवियों का सामूहिक आन्दोलन है। हम आम प्रकाशनों के बरक्स कम कीमत पर श्रेष्ठ साहित्य आम जनता को उपलब्ध कराएँगे। प्रकाशन के विभिन्न राज्यों में पुस्तक बिक्रय केन्द्र हैं तथा अन्य जनधर्मी प्रकाशनों के साथ मिलकर देश भर में पठन-पाठन का वातावरण सृजित करने के लिए पुस्तक मेला आदि का आयोजन कराया जाएगा। हमारे प्रकाशन की पुस्तकें विभिन्न वेबसाईटों व ई-मार्केटिंग साईटों पर भी उपलब्ध रहेंगी।

३- लोकोदय के उद्देश्य

१- लोकोदय जनपक्षर व लोकधर्मी वाम लोकतान्त्रिक साहित्य व संस्कृति के अभिरक्षण, परिपोषण व प्रकाशन हेतु प्रतिबद्ध है।

२- लोकोदय लोकविमर्श आन्दोलन का अनुषांगिक व व्यावसायिक प्रतिष्ठान है। लोकविमर्श आन्दोलन से जुड़े लेखकों व जनवादी लेखक संघ के लेखकों का प्रकाशन हम अपने संगठन के नियमानुसार करेंगें।

३- लोकधर्मी साहित्य के प्रकाशन हेतु एक गैर व्यावसायिक सामूहिक कोष स्थापित है। जिसकी देखरेख लोकविमर्श आन्दोलन के वरिष्ठ साथियों द्वारा की जाएगी व साथियों द्वारा ही इस कोष की वृद्धि हेतु उपाय सुझाए जाएँगे। लोकोदय अपने स्तर से इस कोष की वृद्धि का हर सम्भव प्रयास करेगा।

४- लोकविमर्श आन्दोलन के अतिरिक्त अन्य लेखकों की किताबों का प्रकाशन गुणवत्ता, विचार व लोकोदय संस्था की व्यावसायिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए किया जाएगा। इसका निर्णय हमारी संपादक कमेटी व संचालन कमेटी करेगी।

५- हम पुरानी व अनुपलब्ध आऊट आफ प्रिन्ट लोकधर्मी वाम किताबों के पुनर्प्रकाशन के लिए वचनबद्ध हैं। कोष की उपलब्धता के आधार पर हम समय समय पर ऐसी पुस्तकों का प्रकाशन करते रहेगें।

६- हम सभी ऐसे लेखकों की पुस्तकों का प्रकाशन करेगें जो दूर दराज गाँव व शहरों में संघर्ष कर रहे है़, जो उपेक्षित व प्रकाशकों द्वारा शोषित हैं।

७- हम किताबों को जनता के बीच ले जाएँगे व आम पाठक से प्राप्त टिप्पणियों को 'लोकोदयब्लाग में प्रकाशित करेंगे।

८- लेखकों को रायल्टी दी जाएगी जिसका हिसाब किताब हमारी वेबसाईट पर उपलब्ध रहेगा।

९- हम विधा के रूप में किसी भी कृति के साथ भेदभाव नहीं करेंगे। हम ग़ज़ल, गीत-नवगीत, छन्द, मुक्तक, विज्ञान, इतिहास, लोकसाहित्य व कोश आदि का भी प्रकाशन करेंगे।

१०- प्रकाशन की आर्थिक स्थिति के अनुसार हम समय समय पर लोकविमर्श द्वारा विमोचन व अन्य आयोजन कराए जाएँगे।  

४- हमारे मुख्य प्रकाशन
१- प्रतिपक्ष का पक्ष आलोचना - उमाशंकर सिंह परमार
२- कोकिला शास्त्र कहानी - संदीप मील
३- वे तीसरी दुनिया के लोग - कविता - बृजेश नीरज
४- आधुनिक कविता आलोचना - अजीत प्रियदर्शी
५- यही तो चाहते हैं वे - कविता - प्रेम नंदन


संपर्क
श्रीमती नीरज सिंह
लोकोदय प्रकाशन   
६५/४४, शंकर पुरी,
छितवापुर रोड, लखनऊ- २२६००१
मोबाइल- ९६९५०२५९२३
        ९८३८८७८२७०

ई-मेल- lokodayprakashan@gmail.com

साथियों को पत्र

प्रिय साथी,

आज हिन्दी साहित्य मठाधीशों और प्रकाशकों के गठजोड़ में फंसकर अपने दुर्दिन की ओर अग्रसर है। प्रकाशन उद्योग पूँजी के हाथों का खिलौना बन चुका है। एक ओर प्रकाशन के नाम पर लेखकों से मोटी रकम वसूली जाती है तो दूसरी ओर सरकारी खरीद में पुस्तकों को खपाकर मोटा मुनाफ़ा कमाने के फेर में पुस्तकों के इतने ऊँचे दाम रखे जाते हैं कि पुस्तक आम पाठक की खरीदी पहुँच के बाहर हो जाती है। ऊपर से रोना यह कि पाठक कम हो रहे हैं, साहित्य की किताबें खरीदने में लोगों की रूचि नहीं है। जबकि हकीकत यह है कि छोटे शहरों को छोड़ दीजिए बड़े शहरों तक में हिन्दी साहित्य की पुस्तकों की बिक्री के लिए कोई ठीक-ठाक दुकान नहीं है। जो दुकानें हैं भी वहाँ प्रकाशकों द्वारा पुस्तक पहुँचाने में कोई रूचि नहीं दिखाई जाती है। शार्ट-कट से पैसा कमाने की लालसा ने वह बाज़ार ही गायब कर दिया जहाँ ग्राहक पहुँचकर किताब खरीद सकें. प्रकाशकों द्वारा दरअसल मुनाफे के खेल में साहित्यिक पुस्तकों को पाठकों से दूर करने की यह साजिश है जिसमें सबसे अधिक शोषण लेखक का होता है। लेखक से न केवल मोटी रकम वसूली जाती है बल्कि पुस्तक बिक्री से होने वाली आय में उसकी हिस्सेदारी, जिसे रॉयल्टी कहते हैं, से भी वंचित किया जाता है।

इस खेल में तथाकथित वरिष्ठ लेखक भी शामिल हैं। आज सत्ता-प्रतिष्ठानों के इर्द-गिर्द चक्कर काटने वाले ऐसे नामधारी ही प्रकाशन ठिकानों को अपने कब्जे में लिए हुए हैं जिससे इनकी दाल गलती रहे। छद्म प्रतिबद्धता और वैचारिकता का मुखौटा पहने ऐसे नामचीन लेखक आजकल सत्ता-प्रतिष्ठानों से अपनी नजदीकियों को बरकरार रखने के फेर में पूँजीपतियों और ऊँचे पदों पर आसीन अधिकारियों व उनकी पत्नियों को साहित्यकार बनाने की मुहिम चलाए हुए हैं। इस पूरे परिदृश्य में सबसे अधिक नुकसान होता है नए रचनाकारों का। यह पूरा माहौल उन्हें मजबूर करता है इस या उस मठ पर माथा टेकने को। जो ऐसा नहीं करते वे हाशिए पर पड़े रह जाते हैं। दूसरा नुकसान उठाने वाला वर्ग है दूर-दराज़ के इलाकों, छोटे शहरों, गाँव-देहात में रहने वाले रचनाकारों का जिनके पास न तो पहुँच है, न संसाधन और न ही पैसा कि वे छप सकें। कुल मिलाकर परिणाम यह है कि प्रतिबद्ध, आम जनता के सुख-दुःख की बात करने वाली, लोक से जुड़ी रचनाएँ पाठकों तक पहुँच ही नहीं पातीं। पाठकों के सामने परोसा जाता है ढेर सारा कचरा।

ऐसे माहौल को देखते हुए लोक विमर्श के साथियों द्वारा अपने आन्दोलन को मजबूत करने के लिए लगातार यह जरूरत महसूस की जा रही थी कि अपना एक प्रकाशन होना चाहिए जिसके माध्यम से आन्दोलन से जुड़ी पत्र-पत्रिकाओं तथा साथियों की रचनाओं को पुस्तक रूप में प्रकाशित किया जा सके। साथ ही, प्रकाशकों द्वारा लेखकों-पाठकों के शोषण के खिलाफ खड़ा हुआ जा सके और साहित्य व आम पाठक के बीच विद्यमान दूरी को ख़त्म करके लोकधर्मी आन्दोलन का व्यापक प्रसार-प्रचार किया जा सके। यदि आन्दोलन का अपना प्रकाशन होगा तो आगे तारसप्तक की तर्ज़ पर लोक-सप्तक तथा हिंदी साहित्य के इतिहास के संपादन जैसी प्रस्तावित योजनाओं पर प्रभावी ढंग से काम किया जा सकेगा  इसलिए आन्दोलन से जुड़े सभी साथियों के अभिमत के अनुसार लोकोदय प्रकाशन प्रारम्भ किया गया है।

लोकोदय प्रकाशन एक सामूहिक प्रयास है। इस प्रकाशन की पहली प्राथमिकता कम मूल्य की पुस्तकें उपलब्ध कराना है। पुस्तक की बिक्री के लिए हम सीधे पाठकों तक अपनी पहुँच बनाने का प्रयास करेंगे। प्रकाशन के विभिन्न राज्यों में पुस्तक विक्रय केन्द्र हैं तथा अन्य जनधर्मी प्रकाशनों के साथ मिलकर देश भर में पठन-पाठन का वातावरण सृजित करने के लिए पुस्तक मेला आदि का आयोजन कराया जाएगा। हमारे प्रकाशन की पुस्तकें विभिन्न वेबसाईटों व ई-मार्केटिंग साईटों पर भी उपलब्ध रहेंगी।

प्रकाशन के सुचारू संचालन हेतु दो समूह बनाए गए हैं- सम्पादक मंडल तथा संचालन मंडलसम्पादक मंडल के सदस्यों का उत्तरदायित्व प्रकाशित होने वाली सामग्री की स्तरीयता बनाए रखना है जबकि संचालन मंडल के सदस्य प्रकाशन के सुचारू संचालन में सहयोग करेंगे। प्रकाशन से स्तरीय पुस्तकों के प्रकाशन तथा उन पुस्तकों को पाठकों तक पहुँचाने का कार्य आप सभी साथियों के सहयोग के बिना संभव नहीं है। इस कार्य में आपका सतत सहयोग और परामर्श प्रार्थनीय है। 

सादर आभार!

नीरज सिंह

लोकोदय प्रकाशन 

घोषणा

लोक विमर्श आंदोलन के अंग के तौर पर साथियों की आम राय से प्रकाशन की शुरुआत करने का निर्णय लिया गया था। उस निर्णय के तारतम्य में 01 जनवरी 2016 को 'लोकोदय प्रकाशन' की स्थापना कर दी गयी है। बाँदा में हुयी बैठक में प्रकाशन की कुछ रूप रेखा तय की गयी थी जो इस प्रकार है-
1- प्रकाशन का उद्देश्य कम मूल्य पर पुस्तकें उपलब्ध कराना है।
2- प्रकाशन का लक्ष्य उस आदर्श स्थिति को प्राप्त करना है जिसमें लेखक से कोई आर्थिक सहयोग न लिया जाए और उसकी पुस्तक पर उसे रॉयल्टी दी जाए।
3- लोक विमर्श आंदोलन और प्रकाशन दोनों प्रारम्भिक अवस्था में हैं और आर्थिक रूप से कमजोर हैं इसलिए अभी फिलहाल लेखक से पुस्तक प्रकाशन का खर्च आर्थिक सहयोग के रूप में लिया जाएगा।
4- प्रारम्भिक दौर में पुस्तकें पेपर बैक में ही छपेंगी।
5- प्रत्येक लेखक को उसकी पुस्तक की 10 प्रतियाँ दी जाएँगी।
7- शेष प्रतियाँ सभी प्रचलित साधनों का प्रयोग करते हुए प्रकाशन द्वारा बिक्री की जाएँगी।
8- बिक्री से प्राप्त होने वाली आय में से लेखक को लाभांश दिया जाएगा।
9- प्रकाशन, डाक और अन्य सभी खर्चों को जोड़ते हुए पुस्तक का मूल्य निर्धारित किया जाएगा लेकिन किसी भी पुस्तक का मूल्य रु 100/- से अधिक नहीं होगा।
11- जो लेखक दस से अधिक पुस्तक लेना चाहेंगे उन्हें अतिरिक्त प्रतियों का मूल्य देना होगा अथवा उसके बराबर धनराशि उनके लाभांश में से काटी जाएगी।


लोक विमर्श आन्दोलन हेतु एक कोश स्थापित किया जाना बेहद जरूरी है। हम अपने साथियों की पुस्तकें तभी नि:शुल्क या बगैर कर्ज के छाप सकेगें जब एक कोश स्थापित होगा। अभी आगे हमें सप्तक व साहित्य के इतिहास पर काम करना है। साथ ही पुराने लेखकों की आउट ऑफ़ प्रिंट हो चुकी किताबों को भी छापना है। अस्तु आप सभी मित्र कोश निर्माण हेतु सुझाव दें तो अच्छा रहे। आन्दोलन आगे बढ़ता रहे।
आशा है सभी साथी इस योजना में साथ देंगे। इस योजना को बेहतर बनाने में आप सभी का सहयोग और सुझाव आमंत्रित हैं।

Friday, 13 May 2016

लोकोदय साहित्य श्रंखला

लोकधर्मी साहित्यिक परम्परा से समकाल को जोड़ना आज के समय की जरूरत है इसलिए लोकोदय प्रकाशन द्वारा 'लोकोदय साहित्य श्रृंखला' प्रारम्भ करने का निर्णय लिया गया है। इसके अन्तर्गत लोकधर्मी कविता, लोकगीत, लोककथा, लोककला इत्यादि पर आधारित संकलन प्रकाशित किए जाएँगे। इस श्रृंखला का प्रारम्भ लोकधर्मी कविताओं के साझा संकलन के रूप में किया जाएगा।
लोकधर्मी कविताओं के साझा संकलनों की इस श्रृंखला का नाम 'कविता आज' होगा। इसके हर खण्ड में दो भूमिकाओं के साथ 21 महत्वपूर्ण लोकधर्मी कवियों की पाँच-पाँच कविताएँ, उनके परिचय तथा आलोचकीय टीप के साथ सम्मिलित होंगी।
'कविता आज-1' में सम्मिलित किए जाने वाले कवियों के नामों पर विचार कर लिया गया है। इस संग्रह के लिए नये और पुरानों कवियों के योग का ध्यान रखा गया है । 'कविता आज-1' में सम्मिलित होने वाले कवि हैं-विजेन्द्र, सुधीर सक्सेना, अनिल जनविजय, नासिर अहमद सिकन्दर, कुअँर रवीन्द्र, नवनीत पांडेय, मणिमोहन मेहता, बुद्धिलाल पाल, शहंशाह आलम, सन्तोष चतुर्वेदी, भरत प्रसाद, महेश पुनेठा, बृजेश नीरज, प्रेमनन्दन,अरुण श्री, रश्मि भरद्वाज, भावना मिश्रा, पीके सिंह, नरेन्द्र कुमार, नारायण दास गुप्त और शम्भु यादव।

'कविता आज' का सम्पादन उमाशंकर परमार और अजीत प्रियदर्शी करेंगे।

लोकोदय आलोचना श्रंखला


पूँजी और सत्ता का खेल अब हिन्दी साहित्य में जोरों पर है। साहित्य जगत पर बाज़ार का प्रभाव अब स्पष्ट नज़र आता है। मठों और पीठों के संचालक, बड़े अफसर, पूँजी के बल पर साहित्य को किटी पार्टी में बदलने के इच्छुकपैकेजिंग और मार्केटिंग में माहिर दोयम दर्ज़े के रचनाकार पूरे साहित्यिक परिदृश्य पर काबिज होने के प्रयास में लगातार लगे रहते हैं। ऐसे रचनाकारों द्वारा खुद की खातिर स्पेस क्रिएट करने के लिए चुपचाप साहित्य कर्म में संलग्न लोकधर्मी साहित्यकारों को लगातार नज़रअंदाज़ करने, उनको हाशिए पर धकेलने की कोशिश की जाती रही है
  
हिन्दी में बहुत से कवि हैं जिनके लेखन पर मुकम्मल चर्चा नहीं की गयी हैऐसे बहुत से कवि हैं जिन्होंने वैचारिक पक्षधरता को बनाए रखते हुए लोक की अवस्थितियों व संघर्षों का यथार्थ खाका खींचा तथा सत्ता और व्यवस्था के विरुद्ध प्रतिरोध की भंगिमा अख्तियार की लेकिन उनके रचनाकर्म पर समुचित चर्चा नहीं हो सकी लोकोदय प्रकाशन ने ऐसे कवियों पर आलोचनात्मक  श्रंखला प्रकाशित करने का निर्णय लिया है। इस श्रंखला का नाम होगा लोकोदय आलोचना श्रंखला इस श्रंखला के प्रथम कवि के रूप में  वरिष्ठ कवि तथा पत्रकार सुधीर सक्सेना के व्यक्तित्व, कृतित्व व काव्य रचना प्रक्रिया पर एक संपादित पुस्तक का प्रकाशन किया जाएगा किताब का संपादन किया जाएगा। इस पुस्तक का सम्पादन प्रद्युम्न कुमार सिंह और उमाशंकर सिंह परमार करेंगे

इस पुस्तक के लिए आलेख आमन्त्रित हैं। इच्छुक लेखक वर्ड फाइल के रूप में कृतिदेव या यूनिकोड फॉण्ट में अपने आलेख परिचय तथा नवीनतम फोटो के साथ इस ई-मेल पर ३० मई २०१६ तक भेज सकते हैं
आलेख भेजते समय यह उल्लेख अवश्य करें कि आलेख सुधीर सक्सेना पर केन्द्रित पुस्तक के लिए भेजा जा रहा है