- संतोष चतुर्वेदी
चकाचौंध भरे उजाले से
अँधेरे में आकर
तत्काल ही नहीं समझा जा सकता
अँधेरे को ठीक से
तब शर्तिया तौर पर चौंधिया जाएँगी आँखें
और नहीं दिखायी पड़ेगा
बिल्कुल नजदीक तक का
अँधेरे में कुछ भी
अँधेरे को देखने के लिए
पहले अँधेरे के अनुकूल बनानी पड़ती हैं आँखें
अँधेरे को समझने के लिए
होना पड़ता है पहले पूरी तरह अँधेरे का
अँधेरे को जानने के लिए
अँधेरे के साथ ही पड़ता है जीना
अँधेरे को नहीं देखा जा सकता
अँधेरे में डूबे बिना
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