Tuesday 12 January 2016

पाश की पाँच कविताएँ

परिचय:-   
  
नाम:- अवतार सिंह संधू पाश
जन्म:- 09 सितम्बर 1950
निधन:- 23 मार्च 1988
जन्म स्थान:- तलवंडी सलेम, नकोदर, जालंधर, पंजाब
प्रमुख कृतियाँ:- लौहकथा (1970), उड्ड्दे बाजाँ मगर (1974), साडे समियाँ विच (1978), लड़ांगे साथी (1988), खिल्लरे होए वर्के (1989)



कविताएँ:- 

(१)
सबसे खतरनाक

सबसे खतरनाक होता है
मुर्दा शान्ति से भर जाना
न होना तड़प का
सब सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौट कर घर जाना
सबसे खतरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना


(२)
सपने

सपने
हर किसी को नहीं आते
बेजान बारूद के कणों में
सोई आग को सपने नहीं आते
बदी के लिए उठी हुई
हथेली के पसीने को सपने नहीं आते
शेल्फों में पड़े
इतिहास ग्रंथों को सपने नहीं आते
सपनों के लिए लाजिमी है
झेलनेवाले दिलों का होना
सपनों के लिए
नींद की नजर होनी लाजिमी है
सपने इसलिए
हर किसी को नहीं आते


(३)
हम लड़ेंगे साथी

हम लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के लिए
हम लड़ेंगे साथी, ग़ुलाम इच्छाओं के लिए

हम चुनेंगे साथी, ज़िन्दगी के टुकड़े
हथौड़ा अब भी चलता है, उदास निहाई पर
हल अब भी चलता हैं चीख़ती धरती पर
यह काम हमारा नहीं बनता है, प्रश्न नाचता है
प्रश्न के कन्धों पर चढ़कर
हम लड़ेंगे साथी

क़त्ल हुए जज़्बों की क़सम खाकर
बुझी हुई नज़रों की क़सम खाकर
हाथों पर पड़े घट्टों की क़सम खाकर
हम लड़ेंगे साथी

हम लड़ेंगे तब तक
जब तक वीरू बकरिहा
बकरियों का मूत पीता है
खिले हुए सरसों के फूल को
जब तक बोने वाले ख़ुद नहीं सूँघते
कि सूजी आँखों वाली
गाँव की अध्यापिका का पति जब तक
युद्ध से लौट नहीं आता

जब तक पुलिस के सिपाही
अपने भाइयों का गला घोंटने को मज़बूर हैं
कि दफ़्तरों के बाबू
जब तक लिखते हैं लहू से अक्षर

हम लड़ेंगे जब तक
दुनिया में लड़ने की ज़रूरत बाक़ी है
जब तक बन्दूक न हुई, तब तक तलवार होगी
जब तलवार न हुई, लड़ने की लगन होगी
लड़ने का ढंग न हुआ, लड़ने की ज़रूरत होगी

और हम लड़ेंगे साथी
हम लड़ेंगे
कि लड़े बग़ैर कुछ नहीं मिलता
हम लड़ेंगे
कि अब तक लड़े क्यों नहीं
हम लड़ेंगे
अपनी सज़ा कबूलने के लिए
लड़ते हुए जो मर गए
उनकी याद ज़िन्दा रखने के लिए
हम लड़ेंगे


(४)
आधी रात में

आधी रात में
मेरी कँपकँपी सात रजाइयों में भी न रुकी
सतलुज मेरे बिस्तर पर उतर आया
सातों रजाइयाँ गीली
बुखार एक सौ छह, एक सौ सात
हर साँस पसीना-पसीना
युग को पलटने में लगे लोग
बुख़ार से नहीं मरते
मृत्यु के कन्धों पर जानेवालों के लिए
मृत्यु के बाद ज़िन्दगी का सफ़र शुरू होता है
मेरे लिए जिस सूर्य की धूप वर्जित है
मैं उसकी छाया से भी इनकार कर दूँगा
मैं हर खाली सुराही तोड़ दूँगा
मेरा ख़ून और पसीना मिट्टी में मिल गया है
मैं मिट्टी में दब जाने पर भी उग आऊँगा


(५)
क़ैद करोगे अंधकार में

क्या-क्या नहीं है मेरे पास
शाम की रिमझिम
नूर में चमकती ज़िंदगी
लेकिन मैं हूँ
घिरा हुआ अपनों से
क्या झपट लेगा कोई मुझसे
रात में क्या किसी अनजान में
अंधकार में क़ैद कर देंगे
मसल देंगे क्या
जीवन से जीवन
अपनों में से मुझ को क्या कर देंगे अलहदा
और अपनों में से ही मुझे बाहर छिटका देंगे
छिटकी इस पोटली में क़ैद है आपकी मौत का इंतज़ाम
अकूत हूँ सब कुछ है मेरे पास
जिसे देखकर तुम समझते हो कुछ नहीं उसमें

4 comments:

  1. पाश मेरे प्रिय कवि....

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  2. पाश मेरे प्रिय कवि....

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  3. आदरणीय पाश जी को मैंने कभी पढ़ा नहीं , उनकी रचनाएँ उकृष्ट होती है सुना था । इस ब्लॉग मे प्रकाशित रचनाओं के मध्यम से मुझे उनकी रचनाओं का रसास्वादन करने का सुअवसर मिला । आपका हार्दिक आभार । आगे भी इसी तरह रचनाकारों की रचनाएँ पढ़ने को मिलती रहेंगी ।

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  4. आदरणीय पाश जी को मैंने कभी पढ़ा नहीं , उनकी रचनाएँ उकृष्ट होती है सुना था । इस ब्लॉग मे प्रकाशित रचनाओं के मध्यम से मुझे उनकी रचनाओं का रसास्वादन करने का सुअवसर मिला । आपका हार्दिक आभार । आगे भी इसी तरह रचनाकारों की रचनाएँ पढ़ने को मिलती रहेंगी ।

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