जनवादी लेखक संघ, बांदा के तत्वाधान में चल रही संवाद गोष्ठियों की श्रृंखला के अन्तर्गत दिनांक 17 जनवरी 2016 को जनपद बांदा में व 18 जनवरी 2016 को कालिंजर में कविता पाठ व गोष्ठियों का आयोजन हुआ। 17 जनवरी को कवि केदार मार्ग, बांदा मे स्थित डीसीडीएफ परिसर में आयोजित संवाद गोष्ठी के तहत तीन प्रकार के कार्यक्रम सम्पन्न हुए। सबसे पहले रायपुर से आए वरिष्ठ चित्रकार कुँवर रवीन्द्र के चित्रों की प्रदर्शिनी का उदघाटन बुन्देलखंड के जलपुरुष पर्यावरणविद पुष्पेन्द्र भाई ने किया। कुँवर रवीन्द्र के चित्रों का मूल विषय था 'समकालीन कविता में लोक'। इस विषय के तहत उन्होंने वैचारिक रूप से बुनियादी बदलावों व लोक की जमीनी कठिनाइयों की अभिव्यक्ति करने वाली समकालीन कविताओं पर चित्र बनाए थे जिन्हें डीसीडीएफ हाल में प्रदर्शित किया गया। इन चित्रों की खास बात यह रही कि सभी कविताएँ आज की पीढ़ी की थीं। भूमंडलीकरण व उदार लोकतन्त्र के खतरनाक प्रभावों की भुक्तभोगी पीढ़ी की कविताओं पर उकेरे गए चित्र थे। आज जब विश्वपूँजी द्वारा तमाम हथकंडे अपनाकर लोक को हाशिए पर ढकेला जा रहा है और उच्चमध्यमवर्गीय विचारों को साहित्य के सरोकारों से जोड़कर वैचारिकता का अपक्षय किया जा रहा है ऐसे में नयी पीढी की लोकधर्मी कविताओं को अपनी कला का स्वरूप प्रदत्त कर कुँवर रवीन्द्र ने लोक को बड़े सजग तरीके से परिभाषित किया है। अपने चित्रों के द्वारा उन्होंने प्रतिरोध के एक नए स्थल को तलाशा है। उदघाटनकर्ता पुष्पेन्द्र भाई ने कहा कि यदि हम बदलाव चाहते हैं तो हमें अन्तिम जन को अपनी रचनाधर्मिता में जगह देनी होगी। परिवर्तन कभी अभिजात्य द्वारा नहीं होते, अभिजात्य क्रान्ति विरोधी होता है। लोक सचेतन संघर्ष कर सकता है यदि हम उसे भविष्य की भयावह चिन्ताओं से अवगत करा सकें। मनुष्य के खिलाफ हो रही साजिशों से यदि हम लोक को अवगत करा सकें तो निश्चित है बदलाव अधिक दिन रुकने वाला नहीं है। कुँवर रवीन्द्र के चित्र इस मायने में बड़ी शिद्दत से अपना काम कर रहे हैं।
संवाद गोष्ठी के दूसरे सत्र में वरिष्ठ कवि एवं सम्पादक सुधीर सक्सेना के नए कविता संग्रह 'कुछ भी नहीं है अन्तिम' का लोकार्पण हुआ। इस संग्रह में उनकी नयी कविताएँ संग्रहीत हैं। इस संग्रह में जीवन के वैविध्यपूर्ण आयामों को जनदृष्टि से परखा गया है। संग्रह का लोकार्पण जनपद बांदा के लोकप्रिय प्रगतिशील किसान प्रेम सिंह ने किया। विमोचन के बाद सुधीर सक्सेना ने इस संग्रह की कई कविताओं का पाठ किया। संग्रह पर परिचर्चा करते हुए युवा कवि सन्तोष चतुर्वेदी ने ‘कुछ भी नहीं है’ अन्तिम को रचनात्मक ऊर्जा की अक्षय सम्भावनाओं का संकेत कहा। उनका कहना था कि हम समाज में मनुष्य की उपस्थिति को तभी प्रमाणित कर सकते हैं जब रचनात्मक ऊर्जा बनी रहे। ‘कुछ भी नहीं है अन्तिम’ रचनात्मक संघर्षों और उसके अन्दरूनी टकरावों की वैज्ञानिक विवेचना करती हुई ऊर्जा को बचाकर रखने की जबरदस्त सिफारिश करती है। जनवादी लेखक संघ, बांदा के सचिव उमाशंकर सिंह परमार ने कहा कि ‘कुछ भी नहीं है अन्तिम’ पूँजी के भयावह साम्राज्य से पीड़ित आम आदमी की चीखों का मुकम्मल दस्तावेज है। ‘हिटलर’ कविता पर अपनी बात रखते हुए उन्होंने कहा कि हिटलर को मिथक के रुप में न लेकर हमें प्रवृत्ति के रूप में लेना चाहिए क्योंकि कवि ने इस प्रवृत्ति को समूचे विश्व के सन्दर्भ में परखा है। आज विश्व का हर गरीब देश फासीवादी प्रवृत्तियों से जूझ रहा है। कहीं धर्म के नाम पर, कहीं रक्त के नाम पर, कहीं आतंक व सत्ता संघर्षों के नाम पर इस आदत को बरकरार रखने की पुरजोर कोशिश की जा रही है। ‘हिटलर’ कविता इस मनुष्यता विरोधी आदत के बरक्स जनचेतना को खड़ा करती है| संग्रह पर बोलते हुए प्रगतिशील किसान प्रेम सिंह ने कहा कि किसानों व उनकी आजीविका को कविता का विषय बनाकर आप हमारे कठिन संघर्षों को आवाज दे रहे हैं। कवि भी किसान है क्योंकि वह परिवर्तन की खेती करता है। आप इतनी दूर से चलकर बुन्देली किसानों के बीच आकर अपने इस कविता संग्रह का लोकार्पण करा रहे हैं यह हम किसानों के लिए भी एक गौरव की बात है। आज जब खेती और किसानी साहित्य से गायब होती जा रही है ऐसे समय में किसानों के पक्ष में आवाज बुलन्द करना हमारी ताकत को बढ़ाता है। अध्यक्षता कर रहे चन्द्रिका प्रसाद दीक्षित ललित ने सुधीर सक्सेना की कविताओं को मनुष्यता व प्रकृति का मार्मिक अवगुंठन कहा। उन्होंने कहा कि जनवादी लेखक संघ ने लगातार कार्यक्रमों का आयोजन करके बांदा में फिर से केदार की परम्परा को जीवित कर दिया है। सभी आगन्तुक कवियों और पाठकों का स्वागत करते हुए उन्होंने भविष्य में इसी तरह के सकारात्मक उम्मीदपरक आयोजनों की कामना व्यक्त की। संवाद गोष्ठी का तीसरा सत्र कविता पाठ का रहा जिसके तहत वरिष्ठ कवि सुधीर सक्सेना, कुँवर रवीन्द्र, सन्तोष चतुर्वेदी, जनपद बांदा के गजलकार कालीचरण सिंह, युवा कवि नारायण दास व प्रद्युम्न सिंह ने कविता पाठ किया। इस सत्र में पढ़ी गयी कविताएँ किसानों के पक्ष में भूमंडलीकरण के नकारात्मक प्रभावों की समीक्षा कर रही थीं। कविता पाठ की अध्यक्षता सुधीर सक्सेना ने की व संचालन जनवादी लेखक संघ के सचिव उमाशंकर सिंह परमार ने किया। जनपद बांदा के युवा कवि प्रद्युम्न सिंह ने किसानों की आत्महत्या पर प्रशासन व जनप्रतिनिधियों की निन्दा करते हुए अपनी कविता 'वह शराबी नहीं था/ भूख ने एक हादसे में ले ली है जान" का पाठ किया। युवा कवि नारायण दास गुप्त ने सामयिक परिस्थितियों की पूँजीकृत संरचना व इस परिवेश में सिमटकर चेतना के हो रहे विनाश पर आक्रोश व्यक्त करते हुए 'लाश में तब्दील हो जाना' नामक कविता पढ़ी। इस कविता में युग और भावबोध दोनों का समन्यवय परखा जा सकता है। गजलकर कालीचरण सिंह जौहर की गजलें और गीत पूरे कार्यक्रम कै दौरान सराहे गए। कालीचरण सिंह की अधिकांश गज़लें साम्प्रदायिक फासीवाद का प्रतिरोध करते हुए व्यक्ति की स्वतन्त्र चेतना की खोज करती हैं। उन्होंने सुनाया 'गीता कुरआन गले मिल जाते। धर्म के ठेकेदार उलझने लगते हैं।' इसी क्रम में रायपुर से आए वरिष्ठ चित्रकार कुँवर रवीन्द्र ने अपनी प्रतिरोधपूर्ण छोटी कविताओं से श्रोताओं का मन मोह लिया। उनकी कविता 'मैं अन्धेरे से नहीं डरता/ अन्धेरा मुझसे डरता है‘ इस सन्दर्भ में बेहतरीन कविता रही। इलाहाबाद से आए युवा कवि और अनहद संपादक सन्तोष चतुर्वेदी ने आज की बेतरतीब जिन्दगी व जीवन की खत्म होती सम्भावनाओं के बीच आम आदमी की अस्मिता व चेतना की बात करने वाली कविताएँ पढीं। सन्तोष ने अपनी कविता ‘भीड़’ पढ़ते हुए कहा कि 'जगह तो हमको ही बनानी पड़ेगी/ बहुत भीड़ है।‘ पर जगह का निर्माण कैसे हो यह आज का बड़ा सवाल है। अस्मिता की रक्षा के लिए मानवीय चेतना या जिसे हम वर्गीय चेतना कहते हैं, को बचाकर रखना पड़ेगा। वर्गीय चेतना ही मनुष्य की अस्मिता बचा सकती है। उन्होंने ‘जद्दोजहद’ कविता पढ़ते हुए कहा 'रंग होने तक बची रहेंगीं आँखें' अर्थात जब तक आँखों में चेतना है तब तक आदमी का अस्तित्व है।
कविता पाठ के इस क्रम में वरिष्ठ कवि सुधीर सक्सेना ने पूँजीवादी उदार लोकतन्त्र के चरित्र का पर्दाफाश करते हुए विविध विषयों के फलक में विन्यस्त कविताएँ पढीं- 'अगर पानी में छपाक से न कूदता आर्कमिडीज/ तो ऐथेन्स की गलियों में न गूँजता यूरेका यूरेका।‘ यह कविता आदमी के साहस से ही नव-परिवर्तन की सीख देती है। उनकी सारी कविताएँ मनुष्य के सपनों को संघर्षों से हासिल करने के कन्टेन्ट पर रहीं- 'यदि शीत आती है तो बसन्त भी ढूँढे'। उनका अन्तिम निष्कर्ष था कि इस दुनिया में कुछ भी असम्भव नहीं है। यदि जनसमुदाय एक साथ व्यवस्था के विरुद्ध खड़ा हो जाएगा तो सभी कुछ अपने आप उपलब्ध हो जाएगा। कुछ भी अनुपलब्ध नहीं है 'जो तत्व मेंण्डलीफ की तालिका में नहीं है/ वे भी हैं कहीं न कहीं।‘ कविता पाठ के उपरान्त कार्यक्रम में उपस्थित वामपंथी विचारक सुधीर सिंह ने आए हुए कवियों का आभार व्यक्त करते हुए कविता पाठ को सामयिक एवं बेहद जरूरी कहा। उन्होंने जनपद बांदा के आए हुए लेखकों-कवियों से अनुरोध किया कि बाबू केदारनाथ अग्रवाल की परम्परा को आगे बढ़ाते हुए हम उनकी विरासत की रक्षा हेतु एक अभियान चलाएँ जिसके तहत हम सब मिलकर उत्तर प्रदेश सरकार को पत्र लिखें और बांदा के किसी भी चौराहे का नामकरण केदारनाथ अग्रवाल के नाम पर करने का अनुरोध करें। हम सब उनके नाम से पार्क या सभागार की माँग भी सरकार से करें। सभी उपस्थित श्रोताओं ने सुधीर सिंह की इस योजना का समर्थन किया। कार्यक्रम के संयोजक जनवादी लेखक संघ बांदा के कवि नारायण दास गुप्त व व्यवस्थापक प्रद्युम्न कुमार सिंह थे। गजलकर कालीचरण सिंह ने समूची गोष्ठी को वीडियो और ध्वनि में रिकार्ड किया। - उमाशंकर सिंह परमार
९८३८६१०७७६
साहित्यिक समाचार
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राष्ट्रीय ख्याति के अठारहवे अम्बिकाप्रसाद दिव्य साहित्य पुरस्कार घोषित
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प्रो. सरन घई, श्री स्वप्निल शर्मा , डा . घनश्याम भारती ,
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श्री विजय कुमार , डा नरेन्द्रनाथ लाहा पुरस्कृत
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तेरह लेखकों एवं दो संपादकों को दिव्य – प्रशस्ति पत्र
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भोपाल । राष्ट्रीय ख्याति के बहुचर्चित अठारहवे अम्बिकाप्रसाद दिव्य स्मृति प्रतिष्ठा पुरस्कारों की घोषणा , सोमवार दिनांक 29 फरवरी ,2016 को , साहित्य सदन , 145-ए , साईँनाथ नगर , सी-सेक्टर , कोलार रोड , भोपाल में आयोजित एक साहित्यिक समारोह में की गई । पुरस्कारों की घोषणा इलाहाबाद की प्रसिद्ध कवयित्री एवं लेखिका श्रीमती विजयलक्ष्मी विभा ने की । इक्कीस सौ राशि के दिव्य पुरस्कार – प्रो. सरन घई (कैनेडा ), को उनके उपन्यास “राजद्रोह ,“ श्री स्वप्निल शर्मा (मनावर ) को काव्य संग्रह “ पटरी पर दौडता आदमी “, डा घनश्याम भारती ( सागर ) को निबन्ध संग्रह “शोध और समीक्षा के विविध आयाम “ श्री विजय कुमार ( सिकन्दराबाद ) को कहानी संग्रह “ एक थी माया “ तथा डा नरेन्द्रनाथ लाहा ( ग्वालियर ) को व्यंग संग्रह “व्यंग कथाएँ “ के लिये प्रदान किये जायेंगे । इसके अतिरिक्त श्री प्रबोध कुमार गोबिल ( जयपुर ) को उपन्यास “जल तू जलाल तू “, श्री रवीन्द्र श्रीवास्तव (मुम्बई) को उपन्यास “रुक्काबाई का कोठा ,” श्री ओशो नीलांचल ( सागर ) को गजल संग्रह “ वक्त का दरिया ,“ सुश्री भावना ( मुजफ्फरपुर ) को गजल संग्रह “शब्दों की कीमत ,“श्री कारूलाल जमडा ( रतलाम ) को नई कविता पुस्तक “वह बजाती ढोल “, श्री रोहित कौशिक ( मेरठ ) को निबन्ध संग्रह “21वीं सदी : धर्म , शिक्षा , समाज और गांधी ,” श्री सगीर अशरफ ( रामनगर ) को निबन्ध संग्रह “ सुगंध मेरे देश की “, श्री आशीष दशोत्तर ( रतलाम ) को कहानी संग्रह “ चे पा और टिटिया “, डा अपर्णा चतुर्वेदी प्रीता (जयपुर ) को कहानी संग्रह “ रेखाओं के पार “ , श्री महेश चन्द्र द्वेदी (लखनऊ) को व्यंग संग्रह “वीरप्पन की मूंछें , “ डा विमल कुमार शर्मा ( भोपाल ) को व्यंग संग्रह “पत्नी पुराण “, श्री वेद प्रकाश कँवर (दिल्ली ) को बाल उपन्यास “कृपाल जंगल का राजा “तथा सुश्री करुणाश्री ( जयपुर ) को बाल कहानी संग्रह “ अपने दीप स्वयं बनो “ को अम्बिका प्रसाद दिव्य प्रशस्ति पत्र प्रदान किये जायेगें । इसके अतिरिक्त श्रेष्ठ साहित्य्क पत्रिकाओं के संपादन हेतु “ सोच विचार “ पत्रिका के संपादक श्री नरेन्द्र नाथ मिश्र ( वाराणसी ) वं श्री मुकेश वर्मा ( भोपाल ) को “समावर्तन” पत्रिका के लिये दिव्य प्रशस्ति पत्र प्रदान किये जायेंगे । दिव्य पुरस्कारों के संयोजक श्री जगदीश किंजल्क ने इस अवसर पर बताया कि दिव्य पुरस्कारों के लिये इस वर्ष देश विदेश से 144 पुस्तकें प्राप्त हुईं थीं । अठारहवे दिव्य पुरस्कारों के निर्णायक विद्वान हैं श्री हरि जोशी , श्री संतोष खरे , श्री मयंक श्रीवास्तव , श्री राजेन्द्र नागदेव , श्री राग तैलंग , श्रीमती विजयलक्ष्मी विभा , श्री प्रभुदयाल मिश्र , श्री प्रियदर्शी खैरा , श्री के. वी . शर्मा , प्रो. आनन्द त्रिपाठी , एवं श्री जगदीश किंजल्क । साहित्य सदन भोपाल की व्यवस्थापक श्रीमती राजो किंजल्क ने इस अवसर पर बताया कि उन्नीसवे दिव्य पुरस्कारों हेतु भी लेखकों की कृतियाँ आमंत्रित हैं ।
(जगदीश किंजल्क )
संपादक : दिव्यालोक , साहित्य सदन ,
145- ए , सांईनाथ नगर , सी – सेक्टर ,
कोलार रोड , भोपाल , म. प्र.
मोबा: 09977782777
ईमेल : jagdishkinjalk@gmail.com
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Jagdish Kinjalk
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